करनाल:-
अखिल भारतीय एकलव्य जनहित सोसाइटी के चेयरमैन प्रो. चंद्रप्रकाश आर्य ने कहा कि हरियाणा शब्द का नाम आते ही जहन में उभर आती है देसी खान-पान, समृद्ध संस्कृति और विरासत की यादें। सीमाओं के प्रहरी यहां के जवानों की जांबाजी और खेतों की अपने खून-पसीने से ङ्क्षसचाई करने वाले धरती पुत्रों की कड़ी मेहनत के किस्से हर किसी की जुबां पर होत हैं। पहली नवम्बर 1966 को पंजाब से अलग होकर हरियाणा के रूप में अस्तित्व में आए इस सूबे ने आज 45 बरस पूरे कर लिए हैं और 46वें में कदम रखा है। सोसाइटी के अध्यक्ष वरुण आर्य ने बताया कि समय के साथ कदमताल करते हुए हरियाणा ने विकास की उड़ान इतनी तेजी से भरी है कि इसमें बहुत पहले अस्तित्व में आए प्रदेश आज कहीं पीछे नजर आ रहे हैं। तरक्की और विकास की उड़ान में हरियाणा ने अधिकांश क्षेत्रों में उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की लेकिन मध्ययुगीन मानसिकता आज भी कहीं न कहीं रुकावट बनी दिख रही है। इतना ही नहीं, पृथक राज्य बनने के साथ ही जिन विवादों ने प्रदेश का दामन थामा था वह तो आज तक सुलझे नहीं हैं, उल्टा और कई नए विवादों ने जन्म ले लिया है।
वरिष्ठ उपाध्यक्ष शिखा गुप्ता व उपाध्यक्ष आशीष गुप्ता ने कहा कि 45 सालों के सफर में हरियाणा ने अपनी समृद्धि के कई उदाहरण पेश किए हैं और गरीब प्रांतों के लिए आज यह सूबा एक मिसाल बनता नजर आ रहा है। बावजूद इसके कई ऐसे पुरुष हैं जो किसी न किसी रूप में प्रदेश की पहचान दूसरे ढंग से भी करवाते प्रतीत होते हैं। ऑनर किलिंग के बढ़ते मामले, घटता लिंगानुपात और समाज के भाईचारे में घुलता जातिवाद का जहर हरियाणा में नया ही कहा जा रहा है।
अमित सचदेवा व दिनेश बक्शी ने कहा कि बुजुर्ग बताते हैं कि बड़े परिवार का दौर हरियाणा ने देखा है और आज छोटा परिवार-सुखी परिवार के नारे के साथ प्रदेश चल रहा है। पुराने जमाने के लोगों को परिवार छोटे होने का मलाल नहीं है। उन्हें दुख है तो इस बात का कि आज छोटे परिवार के चक्कर में बेटियां छोटी हो रही है। अगर हरियाणा नंबर वन बनाना है तो न केवल आर्थिक बल्कि सामाजिक क्षेत्रो में भी बड़ा काम करना होगा।महासचिव प्रो. जयकिशन चंदेल और संगठन सचिव हितेश पाराशर ने कहा कि बात अगर राजनीतिक मोर्चे की करें तो पृथक राज्य बनने अगले वर्ष 1967-68 ही हरियाणा दल-बदल के लिए देश भर में प्रसिद्ध हो गया। इसके बाद लम्बे समय तक यह दौर चला और अब एक बार फिर उन्हीं परम्पराओं की पुनरावृत्ति होती नजर आई। राजनीतिक के जानकारों का मानना है कि अगर यह कहा जाए कि राजनीतिक रूप से आज भी वहीं खड़े हैं, जहां पहले थे तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।
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